पत्रकारिता यूनिवर्सिटी में गोलमाल : कार्य परिषद को रखा अंधेरे में

आशीष तिवारी @ आप की आवाज रायपुर

फर्जी नियुक्ति और बैकडेट से प्रमोशन को कार्यपरिषद से हरी झंडी की तैयारी

आशीष तिवारी @  रायपुर। 5 मई 2022 को कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय रायपुर में कार्यपरिषद की बैठक रखी गई है | इस बैठक में कुछ ऐसे मुद्दे अनुमोदन के लिए रखे गए हैं जो सर्वथा विवादित और संदेहास्पद हैं | इनमें से एक मुद्दा है गलत तरीके से नियुक्त एसोसिएट प्रोफ़ेसर शैलेन्द्र खंडेलवाल की परिवीक्षा समाप्त करने का जिसके बारे में जरुरी तथ्य कार्यपरिषद से छुपाया जा रहा है और खंडेलवाल को अनुचित लाभ पहुँचाया जा रहा है ।

सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी से स्पष्ट होता है कि खंडेलवाल की नियुक्ति के लिए UGC और उच्च शिक्षा विभाग के नियमों एवं प्रक्रिया को दरकिनार कर दिया गया है।

खंडेलवाल की नियुक्ति नवंबर 2019 में हुई थी जिसे लेकर काफी विवाद हुआ था और उच्च स्तर पर इस नियुक्ति प्रक्रिया की शिकायतें अब भी लंबित हैं,| यहाँ तक कि राजभवन और उच्च न्यायालय के निर्देशों को धता बताते हुए खंडेलवाल की बैकडोर एंट्री को विश्वविद्यालय ने हरी झंडी दे दी । किसी भी शासकीय सेवक की नियुक्ति के लिए उसके चरित्र सत्यापन (पुलिस वेरिफिकेशन) की प्रक्रिया की जाती है लेकिन खंडेलवाल के प्रति विश्वविद्यालय का ऐसा नरम रवैय्या है कि बिना चरित्र सत्यापन (पुलिस वेरिफिकेशन) के उसे महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति दे दी गई है । खंडेलवाल के विरुद्ध विश्वविद्यालय प्रशासन को और भी गंभीर शिकायतें मिलती रहीं लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें ठंडे बस्ते में डाल रखा है यहाँ तक कि शासन स्तर पर भी कोई सुध लेने वाला नही है। 

एक RTI एवं सामाजिक कार्यकर्ता ने इस पूरी धांधली की गंभीर शिकायत राजभवन तथा उच्च शिक्षा विभाग को भी दे रखी है लेकिन अब तक उस पर उच्च शिक्षा विभाग ने कोई कार्यवाही नहीं की है । ऐसी ही एक शिकायत विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ शिक्षक ने खंडेलवाल की नियुक्ति के कई वर्ष पहले ही कर दी थी लेकिन उसके बावजूद शिक्षा के मंदिर में खंडेलवाल को शिक्षक के पद पर सुशोभित कर दिया गया । एक शासकीय अधिकारी ने भी खंडेलवाल के विरुद्ध कदाचरण की शिकायत पुलिस एवं प्रशासन को दे रखी है |

गौर करने की बात यह है कि कार्यपरिषद में वरिष्ठ जनप्रतिनिधियों के माध्यम से ऐसी गलत नियुक्ति को सही करवाने की कवायद विश्वविद्यालय प्रशासन के असली चेहरे को बेनकाब करती है ।

इसी तरह एक अन्य मुद्दा है, दो कर्मचारियों को भूतलक्षी प्रभाव से पदोन्नति देने का जिस पर उच्च न्यायालय में वाद लंबित होने के बावजूद विश्वविद्यालय ने रातोंरात कर्मचारियों को अनुचित लाभ देने के लिए पदोन्नति आदेश जारी कर दिया और अब कार्यपरिषद के रास्ते इस गलती पर अनुमोदन की मुहर लगाने की कोशिश हो रही है। पहले लोकल फंड ऑडिट ने इस प्रक्रिया पर विरोध पत्र जारी किया लेकिन इन कर्मचारियों की पैठ इतनी गहरी है कि उन्होंने सब सेट करवा ऑडिट ओब्जेक्शन को हटवा भी लिया।

ऐसे में कार्यपरिषद के सदस्यों को यह अवश्य पड़ताल करनी चाहिए कि जो भी मुद्दे विश्वविद्यालय ने अनुमोदन के लिए रखे हैं, नियमों के अनुसार उनकी सभी प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी है अथवा नहीं ?

कहीं ऐसा न हो कि कार्यपरिषद की बैठक महज खानापूर्ति बन के रह जाये और अयोग्य व्यक्तियों को विश्वविद्यालय में नियुक्ति और पदोन्नति का लाभ मिल जाये।

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